इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

मंगलवार, 1 मई 2007

पानी माढ़े ह नइ गावय खल - भल - खल - भल गाना



     
जीवन यदु
जीयत - जागत मनखे बर जे, धरम बरोबर होथय  ।
एक साँस आजादी के सौ - जनम बरोबर होथय  ।
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जेकर चेथी मं जूड़ा कस , माढ़े रथे गुलामी ,
जेन जोहारे बइरी मन ल, घोलंड के लामा - लामी,
नाँव ले जादा जग मं ओकर, होथे गा बदनामी,
अइसन मनखे के जिनगी, बेसरम बरोबर होथय  ।
एक साँस आजादी के सौ - जनम बरोबर होथय  ।
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लहू के नदिया तउँर निकलथे, बीर ह जतके बेरा,
बेर निकलथे मेट के करिया बादर वाला घेरा,
तभे उसलथे उजियारी ले अंधियारी के डेरा,
सबो परानी बर आजादी, करम बरोबर होथय  ।
एक साँस आजादी के सौ - जनम बरोबर होथय  ।
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जेला नइ हे आजादी के, एकोकनी चिन्हारी,
पर के कोठा के  बइला मन चरथँय  ओकर बारी,
आजादी के बासी आगू बिरथा सोनहा थारी,
सोन के पिंजरा मं आजादी, भरम बरोबर होथय  ।
एक साँस आजादी के सौ - जनम बरोबर होथय  ।
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माढ़े पानी ह नइ गावय , खल - भल - खल - भल गाना,
बिना नहर उपजाय  न बाँधा, खेत मं एको दाना ,
अपन गोड़ के बंधना छोरय , ओला मिलय  ठिकाना,
आजादी ह सब बिकास के, मरम बरोबर होथय  ।
एक साँस आजादी के सौ - जनम बरोबर होथय  ।
कहे नइ पायेवँ अउ का बेरा आगे ?
( जुद्ध अउ प्रेम के संदर्भ में )
धरती कस सुन्दर हस तँय  ह संगवारी,
आने सुन्दरता ह लागय  लबारी -
- कहे नइ पायेवँ अउ का बेरा आगे ?
धरती के छाती ह बम ले कुचरागे ।

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    मनखे के भीतर जब जागिस जिनावर,
    माँस के पहाड़ खोजयँ, लहू के चितावर,
    होगे भसान सही गाँव - देस - बस्ती,
    मन मं कइसे गहसे परसा अउ गस्ती ?
महमहाये तन - मन तोर, जइसे फुलवारी,
साँस ह लगे तोर बिन मोला लबारी -
- कहे नइ पायेवँ अउ का बेरा आ गे ?
फूल - पान रूख - राई, जम्मो झंवागे ।

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    चारों खुंट घटाघोप, छा गे अउ सनाका,
    बरसे गोला - गोली, धाँय  - धुम - धनाका,
    लहू ह बोहावत हे, पानी कस रेला,
    मनखे के कीमत, जस कौड़ी अधेला,
तन हरियर,  मन हरियर, उम्मर मोटियारी,
धान के नवा खेत लागय  लबारी -
- कहे नइ पायेवँ अउ का बेरा आ गे ?
धनहा डोली बिन बियासे लुवागे ।

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    हो कोनो रूसी - चीनी अउ इराकी,
    धरती के नाता ले मोर कका - काकी,
    जुद्ध म मरय   कोनो मनखेच  ह मरथे
    कोनो घर भसके, मोर भिथिया ओदरथे,
बोली गुलाल, तोर हाँसी पिचकारी,
इन्द्रधनुस रंग लगय  जुच्छा लबारी -
- कहे नइ पायेवँ अउ का बेरा आगे ?
धरती के धुँगिया ले बादर करियागे ।

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    बरपेली झगरा अउ जुद्ध खेल हो गे ।
    पिकरी कस झगरा ह आज बेल हो गे ।
    देस आने - आने पन धरती हे एके ।
    मया के मयारू दू खंभा मं टेके ।
देखे हवँ जब ले तोर अँगना - दुवारी,
लागय  सरग तब ले मोला लबारी -
कहे नइ पायेवँ अउ का बेरा आगे ?
धरती के फोटू के कोनहा चिरागे । 
                            पता दाउ चौरा, खैरागढ़ 
जिला - राजनांदगांव (छत्‍तीसगढ़)

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