इस अंक के रचनाकार

इस अंक के रचनाकार आलेख खेती-किसानी ले जुड़े तिहार हरे हरेलीः ओमप्रकाश साहू ' अंकुर ' यादें फ्लैट सं. डी 101, सुविधा एन्क्लेव : डॉ. गोपाल कृष्ण शर्मा ' मृदुल' कहानी वह सहमी - सहमी सी : गीता दुबे अचिंत्य का हलुवा : राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल एक माँ की कहानी : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन अनुवाद - भद्रसैन पुरी कोहरा : कमलेश्वर व्‍यंग्‍य जियो और जीने दो : श्यामल बिहारी महतो लधुकथा सीताराम गुप्ता की लघुकथाएं लघुकथाएं - महेश कुमार केशरी प्रेरणा : अशोक मिश्र लाचार आँखें : जयन्ती अखिलेश चतुर्वेदी तीन कपड़े : जी सिंग बाल कहानी गलती का एहसासः प्रिया देवांगन' प्रियू' गीत गजल कविता आपकी यह हौसला ...(कविता) : योगेश समदर्शी आप ही को मुबारक सफर चाँद का (गजल) धर्मेन्द्र तिजोरी वाले 'आजाद' कभी - कभी सोचता हूं (कविता) : डॉ. सजीत कुमार सावन लेकर आना गीत (गीत) : बलविंदर बालम गुरदासपुर नवीन माथुर की गज़लें दुनिया खारे पानी में डूब जायेगी (कविता) : महेश कुमार केशरी बाटुर - बुता किसानी/छत्तीसगढ़ी रचना सुहावत हे, सुहावत हे, सुहावत हे(छत्तीसगढ़ी गीत) राजकुमार मसखरे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की रचनाएं उसका झूला टमाटर के भाव बढ़न दे (कविता) : राजकुमार मसखरे राजनीति बनाम व्यापार (कविता) : राजकुमार मसखरे हवा का झोंका (कविता) धनीराम डड़सेना धनी रिश्ते नातों में ...(गजल ) बलविंदर नाटक एक आदिम रात्रि की महक : फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी से एकांकी रूपान्तरणः सीताराम पटेल सीतेश .

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

मया के गोठ...


कृष्ण कुमार अजनबी

 जिनगी आए दुएच दिन के मेला संगी।
आए हन अकेल्ला जाबोन अकेल्ला संगी।।
अमरित पी के कोनो नी आए हे इंहा।
एको दिन तो जाएच ल हे सबेला संगी।।
मया के गोठ ल तैं गोठियाले जी भर के।
कोंजनी आ जहि कब काल लेएला संगी।।
जिनगी के बारी म कमाले यश के केरा।
झन कमा कुयश के करू करेला संगी।।
काम क्रोध अउ मद लोभ के दैहान म।
झन जाबे कभू तैंहा चारा चरेला संगी।।
सच्चाई धरम अउ नियाय अहिंसा के।
कान फूंका के तैं बन आज ले चेला संगी।।
परेम पिरित बिना सुन्ना ए जिनगानी।
माटी कस घुरत हावय तन ढेला संगी।।
सत करम आए तोर सरग निसैनी।
कुकर्मी ल परथे नरक भोगेला संगी।।
गोदना गोदाय म फबथे सुग्घर तन।
मन के मइल ल उज्जर धोएला संगी।।
सुख अउ दुख आए जिनगी के दु रंग।
कभु हांसेला परथे कभु रोएला संगी।।
हाथ गोड़ म मेंहदी माहुर मुहूं म पान।
मया के रंग म रचा मन हे तेला संगी।।
संगवारी बिन सच रस नईए जीवन म।
भिड़ाले जोड़ी कहुंचो ले अलबेला संगी।।
कोन पतियाही तोर मन के बात ल अजनबी।
सब्बो झिन झेलत हे अपन झमेला संगी।।


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